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उस मालिक के सिवा जगत में नहीं कोई दूजा करतार

उस मालिक के सिवा जगत में नहीं कोई दूजा करतार

उस मालिक के सिवा जगत में नहीं कोई दूजा करतार

नबी रसूल मुहम्मद साहब जगतगुरु अंतिम अवतार

 

वाहिद एक वही करतार

अहद अकेला सर्जन हार

उसकी कु़दरत अपरंपार

पूज उसी को पूज गंवार

उस मालिक के सिवा जगत में नहीं कोई दूजा करतार

नबी रसूल मुहम्मद साहब जगतगुरु अंतिम अवतार

फूल में जैसे बास बसत है

हर दम हर पल साथ रहत है

नैन से नाहीं देख परत है

हर घट में मौजूद रहत है

उस मालिक के सिवा जगत में नहीं कोई दूजा करतार

नबी रसूल मुहम्मद साहब जगतगुरु अंतिम अवतार

 

उसी की काया उसी की माया

उसी का है हर एक पे साया

उसी ने कसरत में भरमाया

उसी ने वहदत को दरसाया

 

उस मालिक के सिवा जगत में नहीं कोई दूजा करतार

नबी रसूल मुहम्मद साहब जगतगुरु अंतिम अवतार

वही निर्गुण हुई सगुन कहाया

सत गुरु की सूरत में आया

रूप अनूप अनेक दिखाया

अलख निरंजन का गुण गाया

उस मालिक के सिवा जगत में नहीं कोई दूजा करतार

नबी रसूल मुहम्मद साहब जगतगुरु अंतिम अवतार

बिन जिभिया बिन स्वर बोलत वो

बिन कानन के सब की सुनत वो

बिन नैनन के सब निरखत वो

बिन कर करता सब हैं करत वो

उस मालिक के सिवा जगत में नहीं कोई दूजा करतार

नबी रसूल मुहम्मद साहब जगतगुरु अंतिम अवतार

धरती और आकाश उसी का

काबा और कैलाश उसी का

देव उसी का दास उसी का

यह सब है प्रकाश उसी का

उस मालिक के सिवा जगत में नहीं कोई दूजा करतार

नबी रसूल मुहम्मद साहब जगतगुरु अंतिम अवतार

 

सबसे आला सबसे बढ़कर

ख़लक का रहबर रब का पयंबर

जिसको नवाज़ा उसने ये कहकर

"इन्ना आतैना-कल कौसर"

 

उस मालिक के सिवा जगत में नहीं कोई दूजा करतार

नबी रसूल मुहम्मद साहब जगतगुरु अंतिम अवतार

अंत फूट सब माटी होई

लेना एक न देना दोई

दौऱे धूपे कितनो कोई

बिना मुहम्मद पार न होई

उस मालिक के सिवा जगत में नहीं कोई दूजा करतार

नबी रसूल मुहम्मद साहब जगतगुरु अंतिम अवतार

 

सतसंगत की यही निशानी

मिट जाए मन की मनमानी

संत सईद की सुनकर वाणी

बोल उठे सब पंडित ज्ञानी

उस मालिक के सिवा जगत में नहीं कोई दूजा करतार

नबी रसूल मुहम्मद साहब जगतगुरु अंतिम अवतार

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