जामिया अरिफिया के लिए एक नए हॉस्टल की बुन्याद , शाह सफ़ी अकादमी की तीन नई पुस्तकों का विमोचन
दाई और उपदेशक को चाहिए कि वे नरमी इख़्तियार करे और लोगों तक बेहतर अंदाज़ में दीन पहुंचाने की कोशिश करें। जब तक हमारी ज़बान और हमारे कार्यों इस योग्य नहीं हो जाते कि इससे लोगों को सुरक्षा पहुंचे हम धर्म के सही दाई नहीं बन सकते। इन विचारों का इज़हार ग़ज़ाली दिवस के चीफ गेस्ट श्री परवफेसर मोईनुद्दीन जीनाबड़े साहब ने किया
आप ने जामिया अरिफिया के छात्रों के संगठन '' जमीअत अल तलबा '' के वार्षिक कार्यक्रम ग़ज़ाली डे में भाग लेने के लिए आए थे। गजाली डे मुसब्का में सफल छात्रों को दाइये इस्लाम के हाथों पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया।
इस विशेष अवसर पर जामिया अरिफिया के शिक्षक मौलाना जिया उर रहमान अलीमी को अपने ज्ञान और अनुसंधान सेवाओं पर "अल आरिफ" पुरस्कार प्रदान किया गया। बाद नमाज इशा कार्यक्रम की निज़ामत मौलाना मुजीबुर रहमान अलीमी ने की .तिलावत ए क़ुरान के बाद मौलाना मकसूद अहमद सईदी, शिक्षक जामिया अरिफिया ने दावते दीन के संबंध में व्यापक संबोधित किया। आप ने कहा कि दाई हिमकमत और अच्छे तरीके का हर जगह लिहाज करना चाहिए, इसके बिना कोई भी व्यक्ति सफल दाई नहीं बन सकता.उसके बाद जामिया के छात्र मौलवी ओवैस रजा गुजराती ने नातिया कलाम पेश किआ।
इसके बाद नक़ीबूससूफिया मुफ्ती किताबुद्दीन रिजवी ने विस्तृत संबोधित कहा। आप अपनी बातचीत में तज़किया ए नफ़्स के संबंध में चर्चा करते हुए फ़रमाया हमें अपने अस्तित्व में व्यवस्था को लागू करने की जरूरत है और इसके लिए हमें अक्सर मशाईख किराम की सोहबत हासिल करनी होगी। इसके बिना न तो हमारा तज़किया ए नफ़्स हो सकता है और न ही व्यवस्था को हम अपने अस्तित्व और अपने समाज में नाफ़िज़ कर सकते हैं।
इस साल ख़ानक़ाह ए अरिफिया द्वारा स्थापित शाह सफ़ी अकादमी की तीन फखीरय पेशकश '' मजमाऊससुलुक, अल एहसान उर्दू अंक (7) और खैराबाद का पांच सौ साला सफर'' की अनावरण उलमा व मशाीख के हाथों अमल में आई। सुबह तक महफ़िल ए समां सजी रही, फज्र की नमाज़ से पहले क़ुल की महफिल हुई और नमाज़ के बाद लंगर आम हुआ। इस अवसर जामिया अरिफिया के लिए एक नए हॉस्टल की बुन्याद भी रखी गई।
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