सैयद सरावां, इलाहाबाद में आयोजित उर्स-ए-आरफ़ी में उलमा का इज़हार-ए-ख़याल
अल्लाह रब्बुल इज्ज़त क़ुराने करीम में अपने ख़ास बन्दों की अलामत का ज़िक्र करते हुए फरमाता है "रहमान के बन्दे, ज़मीन पर नरमी के साथ चलते हैं और जब जाहिल उन से झगड़ते हैं तो उन पर सलामती भेज कर आगे बढ़ जाते हैं" । अल्लाह के लिए दूसरे खास नाम भी हैं, खुद रहमत के लिए एक लफ्ज़ रहीम आता है मगर यहाँ पर रहमान की ख़ूबी का ज़िक्र किया गया है । इसकी वजह उलमा बयान करते हुए फरमाते हैं कि रहमान दूसरे सिफ़ात के मुकाबिल में ज़्यादा आम है । वह ये है कि दुनिया में मुस्लिम व ग़ैर मुस्लिम के बीच फर्क़ किए बग़ैर सब उसके रिज़्क से हिस्सा पाते हैं । उसका इंकार करने वाले, उसकी खुदाई को झुटलाने वाले और उसकी बंदगी से मुंह मोड़ने वाले किसी पर उसके रिज़्क का दरवाज़ा बंद नहीं होता । उसकी नेमतों का दरवाज़ा पूरी इंसानियत के लिए हर वक़्त खुला हुआ है । उसकी रहमत का यही अंदाज़ उसके हकीकी बंदे भी अपनाते हैं । इन तमाम ख्यालात का इज़हार खान्काहे आरिफिया सैयद सरांवाँ इलाहाबाद में आयोजित उर्से-आरिफी के दूसरे दिन मौलाना सैयद क़मरुल इस्लाम साहब ने किया ।
सैयद साहब ने कहा कि रहमान के बंदों का भी दरवाज़ा पूरी मख़्लूक के लिए हर वक़्त खुला रहता है, जहाँ पर लोगो की ज़रूरतें पूँछी जाती हैं, उनका दीन व मज़हब नहीं पूछा जाता । ख्वाजा ग़रीब नवाज़ रहमान के बंदे हैं, इसी लिए उनकी बारगाह में मुस्लिम व ग़ैर मुस्लिम सभी जाते हैं और सबकी हाजते पूरी होती हैं । इस्लाम की चौदह सौ साला तारीख़ में ऐसा कोई वाकिया नहीं मिलता कि बुज़ुर्गान ए दीन ने अपनी खान्काहों या मजलिसों में किसी ग़ैर मुस्लिम को आने से रोका हो ।
दूसरी तकरीर में खतीबुस्सूफिया मौलाना आरिफ इक़बाल मिस्बाही ने इख्वाने रसूल की वज़ाहत करते हुए कहा कि एक दफा अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमायाः मेरे कुछ भाई ऐसे होंगे जिन्हें मै देखना चाहता हूँ, उनसे मुलाक़ात की तमन्ना है । आप के साथियों ने पूछाः क्या हम आपके भाई नहीं हैं? आपने फरमाया कि तुम मेरे अस्हाब हो वे मेरे भाई होंगे । लोगों ने पूछा कि हम उन्हें कैसे पहचानें फरमायाः ऐसे ही जैसे हज़ारो काले घोड़ों के बीच वह घोड़ा पहचान लिया जाता है जिसके माथे या पीठ पर सफ़ेद निशान हो । यह वे लोग होंगे जिनके माथे वज़ू के असर से चमकती होंगी । मौलाना ने हदीस की तशरीह करते हुए कहा कि इख्वाने रसूल से मुराद वे लोग हैं जिनकी अपनी कोई मर्ज़ी नहीं होती है, वह खुदा की मर्ज़ी पर हर दम क़ुर्बान रहते हैं, जिस तरह एक मुर्दा नहलाने वालों के हाथ मे होता है, वे जैसे चाहते हैं उसे उलटते पलटते हैं, इख्वाने रसूल का मामला ऐसे ही अपने रब के साथ होता है ।
तक़रीरी प्रोग्राम के बाद सेमाअ की मह्फ़िल हुई जो सुबह चार बजे तक जारी रही । क़ुल शरीफ और दाई ए इस्लाम शैख अबू सईद की दुआ पर प्रोग्राम खत्म हुआ । इस प्रोग्राम में सैंकड़ों ज़ायरीन के अलावा सैयद ज़रीफ मौदूदी चिश्ती, हज़रत शोएब मियाँ (खैराबाद शरीफ), सैयद ज़िया अलवी (देहली), सैयद मुर्तज़ा पाशा (हैदराबाद), सैयद ग़ुलाम गौस क़ादरी (फतेहपुर), हज़रत मह़बूब मियाँ (महोबा), हज़रत गुलाम दस्तगीर मियाँ (कलकत्ता), हज़रत मौलवी अब्दुल कय्यूम साहब (एम.पी.) और दूसरे बाहरी उलमा और मशाइख भी शरीक रहे ।
Leave your comment