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ख़ानक़ाह ए आरिफिया में उर्स ए अरफी के अवसर पर उलमा का इज़ाहर ए ख्याल

ख़ानक़ाह ए आरिफिया में उर्स ए अरफी के अवसर पर उलमा का इज़ाहर ए ख्याल

अपनी मर्ज़ी को अल्लाह व रसूल के नियमों के अनुसार ढालने वाले ही हक़ पर हैं

शाह सफ़ी अकादमी की एक तहक़ीक़ी पुस्तक '' मसअला ए अज़ान व इक़ामत का विमोचन

कौशाम्बी। हर आदमी इस गुमान और खुशफहमी का शिकार है कि सबसे अच्छा धर्म और पंथ हमारा है, हर किसी का यह एहसास है कि सबसे अच्छा स्टैंड हमारा है। बात यहीं तक नहीं रह गई बल्कि लोग यहां तक ​​कहने लगे हैं कि इस धर्म की सही व्याख्या केवल हमारे ही संस्थान और ख़ानक़ाह से होती है। ये वो दावे हैं जिसमें सही और गलत दोनों की संभावना है लेकिन जब तक दावे की दलील न हो केवल मनुष्य का ज़बानी दावा न इस जीवन में सम्मान दिला सकता है और न ही क़ब्र के अज़ाब और जहन्नम की सजा से सुरक्षित रख सकता है। कुरान और हदीस जिस धर्म को अच्छा कहेगा वह अच्छा होगा और जिसको अच्छा न बताए वह अच्छा न होगा। अल्लाह कहता है कि सबसे अच्छा धर्म उस मनुष्य का है जिसने अपने अस्तित्व को अल्लाह की मर्ज़ी के सामने झुका दिया। हर मनुष्य बोलने, कहने, देखने, चखने और सुनने में अल्लाह और रसूल की इच्छा को ध्यान में रखे। आज ईमान, इस्लाम और एहसान जुदा करके देखा जा रहा है और अपनी मर्ज़ी को मज़हब और क़ानून का दर्जा दिया जा रहा है, जबकि ये तीनों एक दूसरे से अलग नहीं किये जा सकते। इन्हीं तीनों के मजमुआ असल धर्म है और उनसे हटकर धर्म का कोई भी विचार स्वीकार्य नहीं। इन ख़्यालात का इज़हार मुफ्ती मोहम्मद किताबुद्दीन रिजवी जामिया आरिफिया ने उर्स ए आरफी में किया।

ख़ानक़ाह ए आरिफिया, सैयद सरावां में पिछले तीन दिनों से संस्थापक ख़ानक़ाह ए आरिफिया, सुल्तानुल आरेफीन मखदूम शाह आरिफ सफ़ी का 118 वां उर्स  जारी था जो आज संपन्न हुआ। मुफ्ती साहब ने जनता से अपील की कि हक पर होने का दावा करने के बजाय नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की जीवनी को अपने ऊपर लाज़िम कर लें, जिन्होंने अपने जीवन की आखिरी क्षणों में भी अल्लाह की इबादत कर के अपनी उम्मत को इताअत का सबक़ दिया। गौरतलब है कि उर्स ए आरफी के इस तीन दिवसीय कार्यक्रम में विभिन्न शैक्षिक और रूहानियत से भरपूर कार्यक्रम रहे जिसमें पहला दिन इमाम और मुबल्लिग़ की बैठक और जामिया आरिफिया के खत्म ए बुख़ारी शरीफ़ की महफ़िल पर संपन्न हुआ।

दूसरे दिन जुमा की नमाज के बाद महफ़िलए समा सजाई गई और इशा बाद भाषण कार्यक्रम का सिलसिला रहा. इस कार्यक्रम की शुरुआत मिस्र से आए शिक्षक शेख अब्दुल्लाह की तिलावत ए कलाम ए पाक से हुई, ओवैस रजा गुजराती (छात्र) ने नातिया कलाम पेश किया। इसके बाद जामिया के छात्रों ने जामिया का तराना पेश किया। मौलाना मोहम्मद ज़की (शिक्षक जामिया आरिफिया ) ने  खुदा के वजूद पर साइन्सी गुफ्तुगू की। जामिया के अज़हरी शिक्षक शेख मिस्बाह अल यमानी ने अरबी भाषा में तक़रीर की जसिका हिंदी में तर्जुमा मौलाना जिया उर रहमान अलीमी ने की।

इसके बाद छात्र जामिया अरीफिया ने दाई ए इस्लाम की शान में मौलाना जीशान अहमद मिस्बाही की लिखी मनक़बत को पेश किया इसके बाद जामिया अरीफिया से पढ़े हुए बच्चों को दस्तार से सम्मानित किया गया। इस साल जामिया से 60 छात्रों की दस्तार हुई उसके बाद महफ़िल ए समा आयोजित हुई। ये महफिल सुबह तक चलती रही, अंत में दाई ए इस्लाम शेख अबू सईद शाह एहसानउल्लाह  मुहम्मद सफ़वी, सज्जादा नशीं ख़ानक़ाह ए अरीफिया  की दुआओं पर प्रोग्राम समाप्त हुआ और फिर देश भर से ए हजारों ज़ाएरीन ने लंगर भोजन किया।

तीसरे दिन दोपहर की नमाज के बाद दरस ए अक़ाइद के नाम से महफ़िल आयोजित हुई जिसमें मुगती मुफ्ती मोहम्मद किताबुद्दीन रिजवी के अहले सुन्नत के बारे में समझाया और अक़ीदे के ताल्लुक़ से अहम और ईमान बढ़ाने वाली बात कही। उर्स की तमाम तक़रीब की निज़ामत मौलाना आरिफ इक़बाल मिस्बाही और अनीस अहमद अशरफी ने की। उर्स ए आरफी सय्यद डॉक्टर शमीम अहमद गौहर (अल्लाहाबाद) सय्यद ज़िआ अल्वी (खैराबाद) सय्यद सैफुद्दीन क़ादरी (कोलकाता) सैयद आतिफ काज़मी (अजमेर) सैयद आरिफ मसूदी (बांदाः) सैयद ग़ुलाम ग़ौस क़ादरी (फतेहपुर) मौलाना नज़ीर अहमद मन्नानी (खैराबाद) और दूसरे बहुत से उलमा व मशाइख मेहमान ए खुसूसी की तौर पर शरीक थे

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